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कुछ किस्से मेरे भी

कुछ किस्से मेरे भी  उस रात... मेरी कलाई घडी रात का एक बजा रही थी। जो दिसंबर की इस सर्द रात के लिए वैचारिक थी। झींगुर अपने रहस्यमयी संगीत में व्यस्त थे। वो अजीब संगीत जो एक ही पल आनंदमयी और दूसरे ही पल भय पैदा कर रहा था। हवा, चेहरे को किसी बर्फ के टुकड़े की तरह स्पर्श कर रही थी। मैं इस सुनसान बस स्टैंड पर अकेले नही ठिठुर रहा होता यदि मैं शैलेन्द्र की बात मान लेता। उसने कहा भी था 'अभि! मैं तुझे घर तक ड्राप कर देता हूँ।' उसने एक अच्छे दोस्त होने का कर्तव्य निभाया। 'नही..नही इट्स ओके!' मैंने कहा। जबकि मैं उसे व्यर्थ तकलीफ नही देना चाहता था। आखिर आज उसकी बहन की शादी हुई थी..हजारों काम थे उसे। मुझे अभी दस मिनट ही हुए थे..बस का इंतज़ार करते हुए। यहां मेरे और इस सोते हुए कुपोषित कुत्ते के अतरिक्त कोई नही था। वाहन तो आ जा रहे थे इस रास्ते पर। लेकिन पैदल व्यक्ति नदारद थे। मैंने अपनी जेब से गोल्ड फ्लैक सिगरेट की डिब्बी निकाली, जिसमे बची दो सिगरेटें मुझे पुरानी प्रेमिका की तरह देख रही थी। एक को खींचकर मैंने होटो के बीच दबा लिया व अन्य जेबो में लाइटर टटोला। वो मेरे कोट के